फूलन गैंग से थी नफरत, इस डकैत ने 15 को लाइन में खड़ी करके मारी गोली
मुंबई- उसे नफरत थी फूलन देवी के पूरे गैंग से, इसलिए उसने एक साथ लाइन में खड़ा करके 15 लोगों को गोलियों से भून डाला। वो उस दिन बेतवा नदी के किनारे बसे मईअस्ता गांव में कहर बनकर आई और गांव के तमाम लोगों को मौत की नींद सुला गई। उसने गांव में उनके घरों को आग के हवाले कर दिया।
ये कहानी है बेहद क्रूर डाकू कुसुमा नाइन की। वो इतनी खतरनाक थी कि लोगों की आंखें तक निकाल लेती थी। साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में कुसुमा नाइन का जन्म हुआ। पिता गांव के प्रधान थे तो कुसुमा को बचपन से कोई कमी नहीं थी। कुसुमा को तेरह साल की उम्र में गांव के ही एक लड़के माधव मल्लाह से प्यार हो गया। वो उस लड़के के साथ भाग गई, लेकिन पिता के दवाब के बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। कुसुमा के पिता ने उसकी शादी कही और करवा दी। यहीं से शुरू होती है कुसुमा की जिंदगी की असल कहानी।
उधर, माधव मल्लाह से कुसुमा का प्यार भुलाए नहीं भुलाया जा रहा है। वो चंबल में उस वक्त के मशहूर डाकू विक्रम मल्लाह के गैंग में शामिल हो जाता है। कुछ सालों बाद माधव मल्लाह अपने पूरे गैंग के साथ कुसुमा को उसके ससुराल से उठाकर चंबल ले जाता है। कुसुमा जो शादी के बाद कुसुमा नाइन बन चुकी थी, अब माधव के साथ विक्रम मल्लाह गैंग की सदस्य बन जाती है।
उस वक्त विक्रम मल्लाह के गैंग में फूलन देवी भी शामिल थी। फूलन देवी को विक्रम मल्लाह के काफी करीब माना जाता था और पूरे गैंग में उसकी धाक थी। कुसुमा के गैंग में शामिल होने के बाद फूलन देवी उससे चिढ़ने लगी थी। इसी बीच कुसुमा को एक दूसरे गिरोह के डाकू लालाराम से प्यार हो गया। दरअसल, फूलन देवी के कहने पर कुसुमा को लालाराम के पास भेजा गया था, उसके साथ प्यार का नाटक कर उसका कत्ल करने के लिए।
कुसुमा प्यार का नाटक करते-करते लालाराम से सच में प्यार करने लगी और उसके ही गैंग में शामिल हो गई। लालाराम ने कुसुमा को बंदूक चलाना सिखाया। वो धीरे-धीरे हथियार चलाने में माहिर होने लगी। उसके और लालाराम के प्यार के चर्चे हर तरफ फैलने लगे। उसने लालाराम के गैंग में अपनी खास जगह बना ली। अपहरण, फिरौती, मारपीट, लूट न जाने कितनी ही वारदातों को उसने अकेले ही अंजाम दिया।
कुसुमा का कहर इतना ज्यादा बढ़ने लगा था कि आसपास के गांव लोग उसके नाम से भी घबराते थे। एक बार तो उसने जालौन जिले के एक गांव में जाकर एक महिला और उसके बच्चे को जिंदा जला डाला। फिर तो बड़े-बड़े डाकू भी उसके नाम से घबराने लगे। कुसुमा की फूलन देवी और विक्रम मल्लाह के खिलाफ नफरत बढ़ती जा रही थी। कुछ समय बाद उसने लालाराम के साथ मिलकर विक्रम मल्लाह और माधव मल्लाह को मुठभेड़ में मरवा दिया।
इसके बाद चंबल के बीहड़ में सिर्फ लालाराम और कुसुमा नाइन का साम्राज्य बचा। 1982 में एकसाथ 22 ठाकुरों को गोलियों से भूनने के बाद फूलन देवी भी आत्मसमर्पण कर देती हैं। इसके साथ ही, पूरे चंबल में कुसुमा नाइन की राह में एक भी रोड़ा नहीं बचता। हालांकि, फूलन देवी और उसके गैंग से उसकी नफरत खत्म नहीं हुई। वो इसका बदला लेती है मईअस्ता गांव में जहां ज्यादातर मल्लाह रहते थे। बात 1984 की है वो इस गांव में जाकर बिल्कुल फूलन देवी के ही अंदाज में यहां के 15 लोगों को गोलियों से भून डालती है।
कुसुमा नाइन का कहर बढ़ता ही जा रहा था। वो लालाराम से भी ताकतवर हो गई थी और फिर एक दिन गुस्से में वो लालाराम को भी छोड़ देती है। इसके बाद कुसुमा का अगला ठिकाना था फक्कड़ बाबा का गिरोह। फक्कड़ बाबा का उन दिनों काफी नाम था। फक्कड़ बाबा था तो डाकू, लेकिन अध्यात्म में उसकी रुचि थी। वो कत्ल तो करता था, लेकिन साथ ही पूजा-पाठ भक्ति भाव में भी आगे रहता था। कई डाकू फक्कड़ बाबा को अपना गुरु मानते थे। कुसुमा नाइन भी फक्कड़ बाबा के साथ अपनी ताकत बढ़ाने लगी। साथ ही यहां से उसका ध्यान भी भक्ति-भाव की तरफ बढ़ा।
उसके अपराधों की लिस्ट बढ़ती जा रही थी और पुलिस को उसकी तलाश थी। 1995 में कुसुमा ने एक रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण किया और 50 लाख की फिरौती मांगी। जब कुसुमा को फिरौती की रकम नहीं मिली तो उसने हरदेव आदर्श को गोली मार कर नहर में बहा दिया। इस घटना के बाद वो पुलिस की मोस्ट वॉन्टेड लिस्ट में शामिल हो गई थी और उसपर 35 हजार रुपये का इनाम रख दिया गया।