जीएसडीपी के मुकाबले 30-31 फीसदी रह सकता है राज्यों का कर्ज
मुंबई- राज्यों का कर्ज चालू वित्त वर्ष में उनके सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के मुकाबले 30-31 फीसदी के ऊंचे स्तर पर रहेगा। यह आंकड़ा 2021-22 में 31.5 फीसदी था। बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में क्रिसिल ने कहा कि राजस्व में मामूली वृद्धि और अपने साधनों से ज्यादा उधारी लेने के कारण राज्यों का कर्ज उच्च स्तर पर रहेगा।
वित्त वर्ष 2016-20 के दौरान 25 से 30 फीसदी की सीमा में रहने के बाद राज्यों का कर्ज वित्त वर्ष 2020-21 में 34 फीसदी के स्तर को पार कर गया था। यह एक दशक में सबसे अधिक था। मामूली राजस्व वृद्धि के साथ उच्च पूंजीगत खर्च के चलते राज्यों की कर्ज जरूरतें बनी हुई हैं। हालांकि, राज्यों को एक लाख करोड़ रुपये की विशेष सहायता देने के केंद्र सरकार के फैसले से कुछ राहत मिल सकती है।
यह अनुमान 18 शीर्ष राज्यों के अध्ययन पर आधारित हैं। इन राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और केरल शामिल हैं। ये राज्य जीएसडीपी में 90 फीसदी हिस्सा रखते हैं। अध्ययन से पता चलता है कि राज्य मुख्य रूप से अपने राजस्व घाटे और पूंजीगत खर्च के लिए उधार लेते हैं।
क्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक अनुज सेठी के अनुसार, मजबूत जीएसटी संग्रह के कारण राज्यों के कुल राजस्व में इस वित्त वर्ष में 7-9 फीसदी की वृद्धि होने की उम्मीद है। लेकिन ईंधन से बिक्री कर संग्रह, केंद्रीय अनुदान में मामूली वृद्धि और जून 2022 के बाद जीएसटी मुआवजे को बंद करने से उनकी राजस्व वृद्धि में कमी आएगी।
पिछले वित्त वर्ष की तरह राजस्व खर्च में 11-12 फीसदी की वृद्धि होना तय है। इसमें वेतन, पेंशन और कर्ज के रूप में उच्च प्रतिबद्ध खर्च से प्रेरित है। इससे राजस्व खाते में मामूली कमी आएगी और इस वित्त वर्ष में सामूहिक रूप से 0.8 लाख करोड़ रुपये (जीएसडीपी का 0.3 फीसदी) का घाटा होगा। इसके अलावा, राज्यों को सड़कों, सिंचाई, ग्रामीण विकास आदि के लिए उधार लेने की जरूरत होगी।
राज्यों ने चालू वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च में 40 फीसदी की वृद्धि के साथ 6.4 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा है, लेकिन एजेंसी को उनके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए पूंजी खर्च में केवल 15-17 फीसदी की वृद्धि दिखाई देती है। फिर भी, राज्यों को 50 साल के ब्याज मुक्त कर्ज के रूप में एक लाख करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता आंशिक रूप से पूंजीगत खर्च लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगी।