भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में ग्रोथ को रोक महंगाई को कम करने की कोशिश
मुंबई- देर-सबेर ही सही, भारतीय रिजर्व बैंक ने दुनिया भर के केद्रीय बैंकों के उठाए गए कदमों के आधार पर बढ़ती महंगाई क ो रोकने के लिए उपाय शुरू कर दिया है। हालांकि यह कदम पहले उठाया जाना चाहिए था, पर अभी तक
ऐसा कहा जाता रहा है कि महंगाई नियंत्रण में है और इसलिए इसकी जरूरत नहीं है। लेकिन जब ऐसा लगा कि अब मामला हाथ से बाहर निकल रहा है तो आनन-फानन में बिना तय समय के ही रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 40 बीपीएस बढ़ाकर पहला कदम साध लिया। लेकिन इससे बहुत ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि आने वाले समय में महंगाई और ज्यादा बढऩे का अनुमान है और इसे रोकने के लिए जब जून में मौद्रिक नीति की समीक्षा होगी तो फिर से एक बार दरों को बढ़ाया जाना तय है।
भारत में महंगाई पिछले साल से ही बढ़ रही है। एक साल की बात करें तो टमाटर की कीमत 89 फीसदी बढ़ी जबकि आूल 16 फीसदी, सूर्यमुखी तेल 15, मसूर दाल 14, सरसों का तेल 13, आटा 7, दूध 6 और चीनी की कीमत 4 फीसदी बढ़ी। इसी तरह इस साल जनवरी में पेट्रोल की कीमत 95 थी जो अब 105 रुपये लीटर हो गई। डीजल की कीमत 86 से 96 रुपये हो गई।
इसी साल 18 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का बयान आया था कि खुदरा महंगाई दर पूरी तरह से नियंत्रण में है। उन्होंने आरबीआई के इस भरोसे से भी सहमति जताई कि अगले महीने से खुदरा महंगाई दर में कमी आ सकती है। हालांकि मार्च में ही सरकार और रिजर्व बैंक दोनों का जो महंगाई का लक्ष्य था वह पार कर गया था। सरकार ने आरबीआई को महंगाई दर 2-6 फीसदी के अंदर रखने के लिए कहा था, पर यह मार्च में 17 महीने के ऊपरी स्तर 6.95 फीसदी पर पहुंच गई। सितंबर में यह 4.35 फीसदी थी जो दिसंबर में 5.66 और जनवरी में 6.01 फीसदी पर पहुंच गई।
मार्च के बाद अब अप्रैल के महंगाई के आंकड़े 12 मई को आएंगे। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ मानते हैं कि अप्रैल में सीपीआई 7.6 फीसदी के ऊपर रह सकती है जो कि आरबीआई के अनुमान से 1.6 फीसदी ज्यादा रहेगी। इसमें सबसे ज्यादा योगदान ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक सेक्टर का है।
आरबीआई का फोकस अब उसी लाइन पर है, जिस पर पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंक चल रहे हैं। यानी विकास दर को रोककर महंगाई को काबू में किया जाए। जब कोरोना शुरू हुआ था, उस समय खर्च कम होने की वजह से विकास दर पर फोकस किया गया और महंगाई को छोड़ दिया गया। इसी का नतीजा रहा कि कोरोना जैसे समय में भारत ने 8 फीसदी तक की विकास दर हासिल तो की, पर इसका खराब परिणाम यह हुआ कि महंगाई डायन उस पर भारी पड़ गई। कहने का मतलब यह है कि विकास और महंगाई को समय-समय पर फोकस करना होगा।
वैसे खुद आरबीआई मानता है कि कोरोना से हुए नुकसान को पाटने में 12 साल लग सकते हैं। इसकी एक हालिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि कोरोना से 50 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और इसे पाटने में 2035 तक का समय चाहिए।
भारत से पहले दुनिया के 21 देशों ने ब्याज दरों में इजाफा किया था। अमेरिका ने जहां बुधवार को आधा फीसदी ब्याज दरें बढ़ाई, वहीं ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन ने 25-25 बीपीएस, सउदी अरब ने 50 बीपीएस, ब्राजील, हंगरी और कोलंबिया ने 1-1 फीसदी जबकि हांगकांग ने 50 बीपीएस का इजाफा किया। हंगरी को छोड़कर सबसे ज्यादा दरें भारत में ही हैं। हालांकि कोरोना के समय कई देशों में ब्याज दरें शून्य हो गई थीं।
पिछले साल अक्तूबर से विदेशी निवेशकों ने लगातार भारतीय शेयर बाजार से पैसे निकाले थे। इन्होंने 1.50 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम निकाल ली है। दरअसल इन निवेशकों ने यह भांप लिया था कि अब ब्याज दरें ऊपर जानी हैं, इसलिए वे शेयर बाजार से पैसा निकाल कर डेट में लगा दिए जहां पर बिना किसी जोखिम के इनको ब्याज मिलने लगा। जबकि अभी भी भारतीय बाजार में इनका रुझान पैसा निकालने का ही है। यही कारण है कि अक्तूबर में 62 हजार पर पहुंचा सेंसेक्स अब 56 हजार के नीचे आ गया है।
भारत ने जहां करीबन 33 महीने बाद दरों में इजाफा किया, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने 10 साल बाद पहली बार दरों को बढ़ाया है। अमेरिका में जहां 22 साल में सबसे ऊंची ब्याज दर है वहीं ब्रिटेन में यह 13 साल के ऊपरी स्तर पर पहुंच गई है।
वैसे महंगाई के मामले में भारत ही प्रभावित नहीं है। पूरी दुनिया में यही हाल है। ब्रिटेन के बारे में अनुमान है कि खुदरा महंगाई 10 फीसदी के ऊपर जा सकती है जो अभी 7 फीसदी पर है। यह 3 दशकों में सबसे ज्यादा है। जबकि 10 फीसदी का आंकड़ा 40 वर्षों में सबसे ज्यादा होगा। तुर्की में अप्रैल में 2002 के बाद पहली बार महंगाई 70 फीसदी है जो कि मार्च में 61 फीसदी थी।
यूरोजोन की बात करें तो यहां पर महंगाई अब तक के रिकॉर्ड स्तर पर है जो 7.5 फीसदी है। अमेरिका में यह 1981 के रिकॉर्ड पर है जो 8.5 फीसदी है जबकि बेल्जियम में 1983 के बाद पहली बार 8.3 फीसदी पर है। मैक्सिको में 2001 के बाद पहली बार 7.5 फीसदी पर तो जर्मनी में यह 1981 का रिकॉर्ड तोड़कर 7.4 फीसदी पर पहुंच गई है। आयरलैंड में 6.7 फीसदी है जो 2000 के बाद सबसे ज्यादा है जबकि यूके में 7 फीसदी है। यह 1992 के बाद सबसे अधिक है। लंका में महंगाई तो 1948 के बाद 30 फीसदी के स्तर पर पहली बार पहुंची है। वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमत का इंडेक्स देखें तो मई 2021 में यह 4.9 फीसदी था जो मार्च 2022 में 12.7 फीसदी पर पहुंच गया है।
भारत हो या दुनिया, किसी के लिए भी रास्ता आसान नहीं है। कारण कि जिस तरह से देशों के बीच तनाव हैं और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति प्रभावित हो रही है, उससे महंगाई अभी भी एक डायन के तौर पर बनी रहेगी। भारत के लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि इसने सस्ते कच्चे तेल के समय में उसका एक बड़ा भंडारण किया है और अभी भी यह तेलों की कीमतोें में इजाफा कर रहा है। यानी महंगाई को रोकने के लिए भारत के पास हथियार यह है कि वह तेलों की कीमतें कम कर कुछ हद तक काबू पा सकता है, लेकिन यह तब होगा, जब बहुत जरूरत होगी। ऐसे में तब तक विकास पर फोकस भारत कुछ हद तक इसे काबू में कर सकता है।