राजस्थान में JSW का बड़ा कारनामा, 24 अरब रुपए के माइनिंग का घोटाला

मुंबई- राजस्थान में JSW द्वारा कोयला खनन की धांधली का बड़ा मामला सामने आया है। इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट सख्त हो गया है। इसने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार बताएं कि 28 हजार 28 करोड़ रुपए रेवेन्यू के नुकसान के मामले में क्यों नहीं जांच कराई जाए। साथ ही कोर्ट ने केंद्रीय कोयला मंत्रालय के प्रमुख सचिव, राज्य के मुख्य सचिव, प्रमुख ऊर्जा सचिव और प्रमुख खान सचिव को भी जवाब देने के लिए कहा है। लिग्नाइट माइनिंग कंपनी बाड़मेर के प्रबंध निदेशक (MD) और राजस्थान खान विभाग के भी MD से भी जवाब देने के लिए कोर्ट ने कहा है है।

कोर्ट ने यह निर्देश लोक संपत्ति संरक्षण समिति के अध्यक्ष रविंद्र सिंह चौधरी की जनहित याचिका पर दिया गया है। जनहित याचिका में राज्य और केंद्र सरकार पर 2,468 करोड़ रुपए कैग ऑडिट पेन्लटी न वसूलने और निजी कंपनी पर कार्रवाई न करने का आरोप भी लगाया गया है। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि बाड़मेर में कापूर्डी और जालिपा लिग्नाइट खान को सार्वजनिक उपक्रम रूट में (RSMML) को आवंटित किया गया था लेकिन इसने इन खानों को बिना केंद्र सरकार की मंजूरी लिए ही बाड़मेर लिग्नाइट माइनिंग कंपनी (BLMCL) को ट्रांसफर कर दिया। इसमें निजी कंपनी जिंदल समूह की 49% हिस्सेदारी है।

रविंद्र सिंह ने 5 जून 2020 को राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। इसमें कहा कि राजस्थान इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (RERC) लगातार राज वेस्ट और BLMCL की दर्जनों याचिकाओं को सुनता है, पर इस अवैध खनन पर मूकदर्शक बना रहता है। कमीशन द्वारा आज तक खनन की प्रति टन लागत की प्रक्रिया को तय नहीं किया गया है और ना ही ये कहा गया कि जब खनन ही अवैध है तो उसकी लागत कैसे तय की जा सकती है।

राज वेस्ट पावर लिमिटेड द्वारा लिग्नाइट आधारित 1000 मेगावाट इलेक्ट्रिक संयंत्र को चलाया जाता है। इसके लिए लिग्नाइट की सप्लाई RSMS को जलीपा व कापुर्डी खदानों से की जाती है। केंद्र सरकार ने 2006 में जलीपा और कापुर्डी लिग्नाइट खदानों का आवंटन RSMS को सरकारी क्षेत्र में उर्जा उत्पादन के लिए किया था। लेकिन राज्य सरकार ने उक्त खदानों को अवैध रूप से बाड़मेर लिग्नाइट माइनिंग को ट्रांसफर कर दिया और सारे अधिकार राज वेस्ट पावर को दे दिया गया है। इस लीज ट्रांसफर को केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में अवैध करार कर कार्रवाई के लिए पत्र लिखा था। 2006 में JSW ने राज वेस्ट पावर की पूरी हिस्सेदारी खरीद ली थी।

JSW द्वारा प्रमोटेड कंपनी BLMCL केंद्र सरकार के आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए राजस्थान में माइनिंग का काम कर रही है। इस मामले में कई बार महालेखा परीक्षक (कैग) और अन्य अथॉरिटी ने कंपनी को काम बंद करने और बकाया वसूलने का आदेश दिया, पर कंपनी ने इन आदेशों को कोई तवज्जो नहीं दिया।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, बाड़मेर लिग्नाइट माइनिंग कंपनी पर रॉयल्टी और माइनिंग की लागत का 24 अरब रुपए भी बकाया है। इसकी रिकवरी भी अभी तक नहीं हो पाई है। दरअसल, राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स (RSMM) का हस्तांतरण बाड़मेर लिग्नाइट ने किया था। बाड़मेर लिग्नाइट को JSW ने प्रमोट किया है।

राजस्थान के माइंस एंड जियोलॉजी विभाग ने राजस्थान के खान एवं पेट्रोलियम विभाग के अतिरिक्त सचिव को 19 सितंबर 2019 को एक पत्र लिखा। इसमें कहा गया कि राजस्थान के जिला बाड़मेर के जालिपा गांव के पास बाडमेर लिग्नाइट माइनिंग को खनन पट्‌टा देने से केंद्र सरकार ने 18 मई 2016 को इनकार कर दिया था।

18 मई 2016 को केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय ने राजस्थान के मुख्य सचिव सीएस राजन को पत्र लिखा। पत्र में लिखा गया कि राजस्थान स्टेट माइंस एंड मिनरल्स (RSMM) के पक्ष में जो खनन पट्‌टा ट्रांसफर किया गया। उसके बाद यह खनन पट्‌टा बाड़मेर लिग्नाइट को ट्रांसफर किया गया। इस बारे में राजस्थान सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह इस मामले में उचित एक्शन ले। इसके बाद राज्य सरकार ट्रांसफर का नया प्रस्ताव भेजे जिसका कोयला मंत्रालय द्वारा निरीक्षण किया जाएगा।

महालेखाकार (कैग) ने 29 अप्रैल 2019 को एक पत्र लिखा। पत्र में कहा गया कि कोई भी व्यक्ति या अथॉरिटी किसी भी मिनरल्स या किसी भी जगह पर ऐसी गतिविधियां करता है तो उससे रिकवरी करना चाहिए। यह रिकवरी रेंट, रॉयल्टी या टैक्स के रूप में हो सकती है। कैग ने कहा कि माइनिंग इंजीनियर के ऑडिट रिकॉर्ड से यह पता चला है कि बाड़मेर में राजस्थान स्टेट माइंस और मिनरल्स को 3,982 हेक्टेयर एरिया 14 जून 2013 को 30 साल के लिए माइनिंग लीज पर दी गई थी। इसे बाद में BLMC को ट्रांसफर कर दिया गया। इस पत्र में भी राजस्थान सरकार को उचित एक्शन लेने को कहा गया था।

बाड़मेर के खनिज इंजीनियर ने 9 मई 2019 को बताया कि राजस्थान के महालेखाकार (कैग) द्वारा लेखा परीक्षा अवधि 2016-2018 में उक्त खनन पट्‌टा का हस्तांतरण RSMML से BLMC कंपनी के पक्ष में केंद्र सरकार की अनुमति के बिना किया गया जो अवैध था। IAS अधिकारी और डायरेक्टर जेके उपाध्याय ने इसे अवैध मानते हुए खनन पट्‌टा में गतिविधियां बंद कराने एवं खनिज उत्पादन को गलत मानते हुए अवैध खनन के विरुद्ध 137.89 करोड़ रुपए की वसूली का आदेश दिया।

इसके बाद 2019 में 9 मई को खनन अभियंता ने खान एवं भूभाग विभाग के डायरेक्टर को पत्र लिखा। पत्र में कहा गया कि महालेखा परीक्षक के निरीक्षण दल ने 1 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2018 तक निरीक्षण किया। 29 अप्रैल 2019 को पत्र में कहा गया कि केंद्र सरकार की अनुमति के बिना बाड़मेर लिग्नाइट का हस्तांतरण अवैध है और इसकी वजह से 137.89 करोड़ रुपए की वसूली की जाए।

कैग ने कहा कि केंद्र सरकार के निर्देश के बाद माइनिंग ऑपरेशन को रोकना चाहिए और रिकवरी करना चाहिए। इसमें मिनरल्स की लागत और अन्य रॉयल्टी शामिल होनी चाहिए। हालांकि माइनिंग को नहीं रोका गया और न ही कोई एक्शन लिया गया। कैग ने कहा कि माइनिंग की लागत 22.98 अरब रुपए बनती है। जबकि रॉयल्टी के रूप में 137.89 करोड़ रुपए की रिकवरी बनती है। इसका मतलब कुल मिलाकर 24.36 अरब रुपए की रिकवरी निकल रही है।

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