ये हैं अफगानिस्तान की महिला पुलिस अफसर, बोलीं, जिंदा रही तो फिर लडूंगी

मुंबई- तालिबान ने जब पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो फेसबुक पर एक पोस्ट की गई। पोस्ट में सुरमा लगी आंखों की तस्वीर थी, जिनसे आंसू निकल रहे थे। लिखा था- मैंने लड़ाई लड़ी, घायल हो गई, पर आत्मसमर्पण नहीं किया। पोस्ट अफगान की उस महिला पुलिस अफसर के अकाउंट से की गई थी, जिसने अपने शहर में घुसे तालिबानियों के खिलाफ हथियार उठा लिया था। ये अफसर मैग्जीन द वीक से फोन पर बात करने को राजी हुई, पर अभी पहचान और लोकेशन न जाहिर करने करने की शर्त पर। 

पढ़िए, तालिबान से टकराने वाली अफगान की महिला पुलिस अफसर  की, जो अभी घायल हैं 

अफगानी महिला पुलिस अफसर ने कहा- ”जब तालिबानी मेरे शहर पर कब्जा करने आए तो मैंने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन पर गोलियां चलाईं। मेरे पैर में गोली लगी और मैं घायल हो गई। एक के बाद एक सड़क तालिबािनयों के कब्जे में जा रही थी। मेरे घर को जला दिया गया। फिलहाल मैं घायल हूं और अभी तालिबान के खिलाफ नहीं खड़ी हो सकती, लेकिन जब मैं बेहतर हो जाऊंगी तो मैं फिर जाऊंगी और लड़ूंगी। मैंने खुलेआम लगातार तालिबान की मुखालफत की है। अगर अभी पकड़ी गई तो मेरा कत्ल होना तय है। पर इससे मैं डरने वाली नहीं। 

जब तालिबानियों से मुठभेड़ हो रही थी तो उनका नुकसान ज्यादा हुआ। हमने तो केवल जरूरत की चीजें खोईं, उनके बहुत सारे लड़ाके मारे गए। जब मैं तालिबान के खिलाफ लड़ रही थी तो मेरे दिमाग में एक ही बात थी कि मुझे देश के दुश्मनों को मौत के घाट उतारना है। एक बार की बात है, जब दो महिलाओं ने घर के किसी पुरुष सदस्य के बिना बाहर निकलने की हिमाकत की थी, तब तालिबानियों ने उन्हें कत्ल कर दिया था। ऐसे में कब तक हम देश की हिफाजत की जिम्मेदारी केवल मर्दों के कंधों पर डालते रहेंगे?” 

तालिबानियों के खिलाफ मेरी जंग काफी पहले तब शुरू हो गई थी, जब मैं स्थानीय प्रशासन के साथ जुड़ी थी। जब कोई शख्स तालिबानियों के खिलाफ जंग में उतरने का फैसला करता है तो उसके लिए खतरे होते हैं। वो हमारे रास्तों में लैंड माइन बिछा देते हैं, हम पर छिपकर हमला करते हैं। अल्लाह का शुक्र है कि तालिबानियों की इन करतूतों के बावजूद मैं जिंदा बच गई। 

गोला-बारूद और हथियारों की कमी के बावजूद भरोसा था कि तालिबानियों ने हमला किया तो एक हजार लोगों को तो जंग के लिए तैयार कर लूंगी। हमारी हुकूमत खराब हालत में थी तो मैंने भारत और दूसरे देशों की ओर रुख किया, पर जवाब न में मिला। अमानवीयता, खून-खराबा और क्रूरता के अलावा वो कुछ नहीं मानते हैं। उनका मकसद केवल अफगानिस्तान को कई साल पीछे धकेल देना है। इन सालों में हमने जो कुछ भी हासिल किया है, तालिबानियों का इरादा उसे मिटा देने का है। 

कट्टरपंथी पाकिस्तान में तैयार किए जाते हैं और अफगानिस्तान में भेजे जाते हैं। अगर तालिबानियों को यहीं नहीं रोका गया तो ये पूरी दुनिया को निगल जाएंगे। हमें ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जंग के लिए तैयार करना चाहिए। क्योंकि, तालिबानियों के हाथों सबसे ज्यादा कष्ट औरतों को ही दिया जाता है। 

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