देश में डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा मिला, वित्तीय साक्षरता गांव-गांव तक पहुंची

मुंबई- उदारीकरण के करीबन 30 साल बाद देश में डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा मिला है। साथ ही वित्तीय साक्षरता यानी बैंकिंग, बीमा, पेंशन, शेयर बाजार जैसे मामलों में गांव-गांव तक लोगों को जानकारी मिल रही है। हालांकि अभी भी इसमें काफी कुछ करना बाकी है।  

दरअसल वित्तीय साक्षरता या फाइनेंशियल इन्क्लूजन का मतलब यही है कि वित्तीय सेवाएं सभी लोगों तक सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से सस्ते दरों पर उपलब्ध हों। इससे देश को आगे ले जाने में मदद मिलती है। संयुक्त राष्ट्र ने यह माना है कि किसी भी देश की तरक्की में वित्तीय साक्षरता प्रमुख योगदान देता है।  

भारत में रिजर्व बैंक द्वारा 2019-2024 के बीच वित्तीय साक्षरता के लिए जो राष्ट्रीय रणनीति बनाई गई है, उसके मुताबिक, सरकार, तमाम फाइनेंशियल रेगुलेटर और वित्तीय साक्षरता की सलाहकार समिति से राय ली गई है। वित्तीय साक्षरता से ऐसा माना जा रहा है कि महिलाओं को इससे मजबूती मिलेगी, रोजगार मिलेगा और गरीबी से बाहर आने में उन्हें मदद मिलेगी। इसीलिए रिजर्व बैंक ने 2015 में देश में स्माल फाइनेंस बैंक के लिए लाइसेंस भी जारी किया।  

रिजर्व बैंक ने देश में वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर इसे शुरू किया है। ग्राहकों को उनके अधिकारों के बारे में सजग किया गया। इसमें कुल 6 रणनीति बनाई गई जो पांच सालों में पूरा करना है। इस रणनीति का मकसद फॉर्मल फाइनेंशियल सेवाओं को सस्ते चार्ज पर दूर-दराज तक पहुंचाना था।  

देश में बैंकिंग आउटलेट्स पर काफी काम किया गया है। गांवों में 2020 मार्च तक कुल 599,217 बैंकिंग आउटलेट्स थे। इस आउटलेट का मतलब यह गांवों में फिक्स्ड पॉइंट सर्विस के रूप में काम करता है। इसे बैंकिंग स्टॉफ या फिर बिजनेस करेस्पॉडेंट द्वारा चलाया जाता है। यह आउटलेट्स बैंकों की बेसिक सेवाएं देते हैं। ये हफ्ते में 5 दिन रोजाना 4-4 घंटे काम करते हैं।  

देश में माइक्रोफाइनेंस की बात करें तो इसके तहत मार्च 2021 तक कुल 6 करोड़ लोगों ने लोन लिया। इसकी कुल रकम 254 करोड़ रुपए रही। प्रति ग्राहक औसत लोन 42 हजार रुपए रहा। यह मूलरूप से छोटे इलाकों में ज्यादा ब्याज पर कारोबार करने वाली संस्था होती हैं और खासकर यह गांवों में तेजी से काम करती है।  

इसी तरह बीमा में इंश्योरेंस प्रीमियम देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP की तुलना में 3.76% रहा है। 2001 में यह 2.71% था। पेंशन के मामले में अटल पेंशन योजना ने काफी कुछ बदला है। यह नेशनल पेंशन स्कीम है जो असंगठित सेक्टर के लिए है। इसमें घरों में काम करनेवाले, माली, डिलिवरी करने वाले जैसे लोग होते हैं। 18 से 40 साल की उम्र के लोगों को इसमें शामिल किया जाता है। इन्हें महीने में 1 हजार से 5 हजार रुपए की पेंशन 60 साल की उम्र के बाद मिलेगी। यह उन पर निर्भर होता है कि कितना वे इसमें योगदान करते हैं। अब तक 3 करोड़ लोग इसके सदस्य हैं।  

जनधन के खाताधारकों को कई सारे प्रोडक्ट एक साथ मिलते हैं। इसमें 10 हजार रुपए का ओवरड्राफ्ट मिलता है। दुर्घटना पर मौत या दिव्यांग पर बीमा कवर मिलता है। टर्म लाइफ कवर और बुढ़ापे में पेंशन की सुविधा मिलती है। इसका फोकस यह है कि 18 साल से ज्यादा की उम्र के सभी भारतीयों का एक बैंक खाता हो।  

देश में वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने में सबसे अहम योगदान स्मार्टफोन और इंटरनेट का है। जिस गति से इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्ट फोन की पहुंच बढ़ी है, उसी गति से लोगों तक फाइनेंशियल सेवाएं भी पहुंची हैं। 45 करोड़ लोग इंटरनेट के दायरे में हैं और 44.8 करोड़ लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। मोबाइल फोन कनेक्शन 1.1 अरब तक है। यही कारण है कि देश में डिजिटल तरीके के पेमेंट को तेजी से बढ़ावा मिला है। अप्रैल महीने में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) के जरिए 20.5 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ है। 

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