भारत के डिजिटल रिटेल बाजार पर कब्जा जमाने के लिए विदेशी कंपनियों में होड़
मुंबई– भारत के डिजिटल रिटेल बाजार पर कब्जा जमाने के लिए इस समय विदेशी कंपनियों में होड़ मची हुई है। टेक्नोलॉजी की दिग्गज फेसबुक, अमेजन और गूगल और क्रेडिट कार्ड सर्विस देने वाली वीजा इंक और मास्टरकार्ड जैसी कंपनियां आमने-सामने आ गई हैं। ये कंपनियां देश में रिटेल पेमेंट्स और सेटलमेंट सिस्टम ऑपरेट करने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन करने की तैयारी कर रही हैं।
मार्च 31 तक आवेदन की समय सीमा से पहले कुछ और कंपनियां इस होड़ में शामिल हो सकती हैं। एक ऐसे बाजार में जहां कैश को अभी भी किंग माना जाता है, वहां डिजिटल पेमेंट को तेजी से बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि भारत के 130 करोड़ लोगों ने ऑनलाइन शॉपिंग और ऑनलाइन गेमिंग और स्ट्रीमिंग जैसी सेवाओं को तेजी से अपनाना शुरू कर दिया है। क्रेडिट सुइस ग्रुप का अनुमान है कि 2023 में भारत में ऑनलाइन पेमेंट में 1 लाख करोड़ डॉलर का होगा। इसलिए कंपनियों ने डिजिटल लेन-देन को और आकर्षक बनाना शुरू कर दिया है। ताकि इस पर अच्छा खासा कमीशन का फायदा भी उठाया जा सकता है।
अमेजन, वीजा, भारतीय बैंक आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड और एक्सिस बैंक लिमिटेड के साथ-साथ फिनटेक स्टार्टअप्स पाइन लैब्स और बिलडेस्क जैसी कंपनियां एक कंसोर्टियम बनाकर साथ आ रही हैं।
दूसरे कंसोर्टियम में रिलायंस इंडस्ट्रीज और उसकी साझेदार फेसबुक, गूगल हैं। इन दोनों ने पिछले साल रिलायंस के जियो में 10 अरब डॉलर से अधिक निवेश किया था। शर्मा का पेटीएम एक ऐसे ग्रुप का लीडर है जिसमें ओला और कम से कम पांच अन्य कंपनियां शामिल हैं। चौथे कंसोर्टियम में टाटा ग्रुप, मास्टरकार्ड, टेलिकॉम ऑपरेटर भारती एयरटेल लिमिटेड और रिटेल बैंक कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड और एचडीएफसी बैंक लिमिटेड शामिल हैं।
यह प्रतियोगिता काफी गलाकाट होने वाली है। क्योंकि रेगुलेटर भारतीय रिजर्व बैंक सिर्फ एक या दो लाइसेंस ही देने वाला है। हालांकि नाम तय करने के लिए कम से छह महीने लग सकते है। इसे लागू होने में एक साल से ज्यादा समय लग सकता है। इसमें जिसे लाइसेंस मिलेगा, उसका मुकाबला 50 से अधिक रिटेल बैंकों द्वारा समर्थित एकमात्र नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया से होगा ।
इसका यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) प्रोटोकॉल 2016 में शुरू हुआ। इसने यूज़र्स को अपने फोन नंबरों को उनके बैंक खातों से लिंक करने की मंजूरी देकर डिजिटल पेमेंट में क्रांति ला दी। इससे पैसों का लेनदेन सिर्फ एक मैसेज भेजने जैसा आसान हो गया। इसका असर यह हुआ कि या कम से कम लागत में तुरंत और ज्यादा से ज्यादा पैसे का ट्रांसमिशन होने लगा।
आईटी सर्विसेज कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि ने कहा कि अधिक लाइसेंसधारियों के आने और इन सिस्टम्स के साथ एक दूसरे के साथ काम करने में सक्षम होने से डिजिटल पेमेंट को और बढ़ावा मिलेगा। हालांकि डिजिटल भुगतान पर कमीशन बहुत ही कम है। पर लेन देन का साइज काफी बड़ा है।