मोरेटोरियम को लोगों ने गलत समझा। यह बस किश्तों को टालने की व्यवस्था है। कोई छूट नहीं- सरकार

मुंबई– लोन मोरेटोरियम पर आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई में सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। उन्होंने कहा कि अगर लोन के ब्याज को माफ कर दिया जाता है तो 6 लाख करोड़ का नुकसान होगा।  

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि किसी छूट पर विचार नहीं किया गया था। मोरेटोरियम के तहत सिर्फ किश्तों का भुगतान टाल दिया गया था। भारतीय बैंकिंग सिस्टम में फिलहाल एक लोन लेने वाले के पीछे 8 जमाकर्ता (depositors) हैं। मेहता ने कहा कि किसी ने इस तथ्य की ओर ध्यान भी नहीं दिया होगा कि अधिकांश खर्च सार्वजनिक स्वास्थ्य में जाता है। इस तरह की राहतों पर अक्सर हर मंत्रालय की नजर रहती है।  

उन्होंने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार ने जो भी कदम उठाए हैं, उसे वही उठाना चाहिए था। NDMA ने इस पहलू को जाहिर किया है कि वित्त मंत्रालय इस पर कोई कॉल ले सकता है या नहीं। वे इस बात पर सहमत हो गए हैं कि मंत्रालय कोई कॉल या फैसला ले सकता है। 

मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग छूट चाहते थे। और अन्य वे बड़े कॉर्पोरेट दिग्गज हैं जो विरासत के विवादों से जूझ रहे है। उनके पास कोरोना से पहले भी काफी समस्याएं थी और यह हो सकता है कि कोरोना महामारी के बाद उनकी समस्याएं और बढ़ गई हों। 3 लाख करोड़ रुपए की इमरजेंसी क्रेडिट लिंक स्कीम लिंक स्कीम शुरू की गई थी। ब्याज माफी कभी भी कोई समाधान नहीं रहा है। पुराने डिफॉल्टर्स का कोविड से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में 6 लाख करोड़ का ब्याज माफ करना सही नहीं है।  

मोरेटोरियम को लोगों ने गलत समझा। यह बस किश्तों को टालने की व्यवस्था है। कोई छूट नहीं। आधे लोन लेने वालों को यह पता था। इसलिए उन्होंने इसका लाभ नहीं उठाया। हम बताना चाहते हैं कि लोन के हर अकाउंट की रिस्ट्रक्चरिंग और उसके हिसाब से उनको कस्टमाइज कर राहत देना, न तो RBI के लिए संभव है और ना ही वित्त मंत्रालय के लिए। पावर सेक्टर के लिए जो कुछ भी किया जा सकता था, वह किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अभिषेक मनुसिंघवी ने कहा कि पावर सेक्टर को बुरे फंसे कर्ज ((NPA) के रूप में घोषित नहीं करना चाहिए।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *