मोदी जी जहां-जहां गए सभी हार गए, अब अमेरिका के ट्रंप की बारी, भला हो कोरोना का कुछ लोग बच गए
मुंबई-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही भारत में अपनी जीत सुनिश्चित कर लेते हैं, लेकिन विदेश में वे जहां जाते हैं उनके दोस्त हार जाते हैं। इसके कारण जो भी हों, लेकिन अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी यही आशंका सता रही है।
ट्रंप को इस बात का अंदाजा तब नहीं रहा होगा, जब वे गुजरात में आए थे। मानो या न मानो, हाउडी मोदी से लेकर गुजरात तक ट्रंप के आने के बीच जो दोस्ती का रिश्ता था, वह अब ट्रंप की हार में बदल रहा है। मोदी जी की जिन नेताओं से गलबहियाँ हुई, उनका करियर तबाह हो गया।
मोदी जी कनाडा गये तो हार्पर चुनाव हार गये। फ़्रांस के ओला से दोस्ती गहराई, तो उनका पत्ता साफ़ हो गया। उनकी जगह आये मैकराँ से छनने लगी, तो उनकी लोकप्रियता का गुब्बारा फट गया। यही नहीं, जर्मनी की मार्केल से नज़दीकी बढ़ी, तो उनकी लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर चली गयी और उन्हें अपनी पार्टी और गठबंधन का नेता पद छोड़ना पड़ा।
मोदी जी ब्रिटेन गये, तो कैमरन को हटना पड़ा और उनके बाद आयीं थेरेसा मे को वैसे ही बेहाल जाना पड़ा। ओबामा से मिलने का सूट किसको याद नहीं है? सूट पहन कर ओबामा को चाय पिलायी, तो डेमोक्रेटिक पार्टी हार गयी और ट्रंप आ गये। ट्रंप की भक्तों ने पूजा की, पर वे मोदी जी पर ही व्यंग्य करने लगे। अब उनकी विदाई भी हो रही है। पाकिस्तान के नवाज़ शरीफ़ से भाईचारा बढ़ाया तो उन्हें बस पद ही नहीं छोड़ना पड़ा, बल्कि चुनाव हारना पड़ा और जेल जाना पड़ा।
श्रीलंका में सिरीसेना-विक्रमसिंघे-राजपक्षे प्रकरण तो सामने ही है। मोदी जी के मित्रों में ले-देकर जापान के शिंजो आबे ही कुछ टिके हैं, पर उन्हें भी हटना पड़ा। मोदी जी के एक अन्य अभिन्न मित्र इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू दोस्ती के बाद से जुगाड़ से सत्ता में हैं और उन पर भ्रष्टाचार का मामला चल रहा है तथा उनकी सरकार डाँवाडोल चल रही है।
कहना ना होगा कि जब इतने दोस्त को मोदी ने कुछ ही साल में सत्ता से हटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो भला उनकी किस्मत के भरोसे भारत कितना दिन चलेगा। किस्तम तो यह देखिए कि जिस प्याज का रोना मोदी साहब रो रहे थे, वह प्याज 100 रुपए किलो होकर गरीबों के आंसू से चिपक गई है। प्याज का छिलका भी गरीबों से दूर हो गया है।
आलू की क्या कहें, आलू भी 50 से ऊपर ही है। मोदी की उम्र से ज्यादा पेट्रोल और डीजल की कीमतें तो पहले से थीं, अब प्याज उससे भी आगे चली गई है। अमेरिका के रिपब्लिकन नेता भी डर रहे हैं कि अगर ये हारा, जिसकी सम्भावना ज़्यादा है, तो भी ये आसानी से व्हाइट हाउस नहीं छोड़ेगा। ऐसे में आगे यह देखना जरूरी होगा कि मोदी साहब का अगला दोस्त कौन है जो सत्ता से बाहर होगा, यह तो खैर मनाइए कोरोना की, जिसने मोदी जी के विदेशी दौरों पर लगाम लगा दी। वरना अब तक कई और देश के महारथी की कुर्सी जानी तय ही थी। वे नेता भी सोच रहे होंगे कि भला हो कोरोना का, जिसने इतना काम तो किया है।