फ्रैंकलिन टेंपल्टन की घटना के बाद सेबी ने डेट फंड में किया कई बदलाव, जानिए इससे आप पर क्या असर होगा
मुंबई-फ्रैंकलिन म्यूचुअल फंड की 6 डेट स्कीम बंद होने के बाद से सेबी ने इस मामले में खास ध्यान दिया है। उसने डेट और इक्विटी फंड को लेकर पिछले एक महीने में कई बदलाव किया है। डेट म्यूचुअल फंड में पिछले कुछ समय से निवेशकों को जमकर घाटा हुआ है। इस कारण सेबी को यह सब करना पड़ा।
बता दें कि फ्रैंकलिन टेंपल्टन की स्कीम डिफॉल्ट हो गई थीं। इस वजह से उसके निवेशकों के 28 हजार करोड़ रुपए फंस गए थे। हालांकि उसके बाद से धीरे-धीरे पैसे वापस मिल रहे हैं। निवेशकों के हितों को देखते हुए मार्केट रेगुलेटर सेबी ने म्यूचुअल फंड के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं, जिससे इनमें रिस्क को कम किया जा सके। साथ ही भविष्य में ऐसी घटनाओं पर रोक लगे।
रिस्क की पहचान- सेबी ने म्यूचुअल फंड्स को यह कहा कि वे अब एक नई चेतावनी भी फंड प्रोडक्ट में देंगे। यह मूलरूप से जोखिम से संबंधित है। अब हर फंड के रिस्कोमीटर में वेरी हाई रिस्क यानी सबसे ज्यादा जोखिम कैटेगरी भी अब इसमें शामिल होगी। सभी म्यूचुअल फंड्स को अब रिस्क-ओ-मीटर में 5 के बदले 6 संकेत दिखाने होंगे। 5 रिस्कोमीटर में लो, मॉडरेटरी लो, मॉडरेट, मॉडरेटरी हाई और हाई हैं। अब इसमें वेरी हाई भी जोड़ा जाएगा। यह 1 जनवरी 2021 से लागू होगा।
मल्टी कैप को बदला- सेबी के नए नियमों के मुताबिक अब फंड्स का 75 फीसदी हिस्सा इक्विटी में निवेश करना जरूरी होगा। यह अभी तक 65 पर्सेंट था। अब मल्टी कैप फंड्स के स्ट्रक्चर में बदलाव होगा। फंड हाउस को मिडकैप और स्मॉलकैप में 25-25 पर्सेंट निवेश करना जरूरी होगा। वहीं, 25 फीसदी लार्ज कैप में लगाना होगा। पहले फंड मैनेजर्स चाहे जितना भी निवेश कहीं भी कर सकते थे। जनवरी 2021 से ये नया नियम लागू होगा।
लिक्विड फंड में 20 पर्सेंट हिस्सा रखना होगा- सेबी ने लिक्विड फंडों को अपने पोर्टफोलियो का कम से कम 20 पर्सेंट हिस्सा लिक्विड असेट्स जैसे कैश, ट्रेजरी बिल, सरकारी प्रतिभूतियां (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज) में अनिवार्य कर दिया है। इसके अलावा, कम अवधि के लिए अपना पैसा जमा करने के लिए लिक्विड फंड का उपयोग कॉर्पोरेट नहीं कर पाएंगे।
15 दिन में पोर्टफोलियो का खुलासा– इस साल जुलाई में सेबी ने कहा था कि डेट म्यूचुअल फंड को 30 दिनों के बजाय हर 15 दिनों में अपने पोर्टफोलियो का खुलासा करना होगा। क्योंकि केवल चुनिंदा फंड ही महीने में दो बार अपने पोर्टफोलियो का खुलासा कर रहे थे। इससे निवेशकों को जोखिम को समझने में मदद मिलेगी।
फंड मैनेजर्स को बनाया जवाबदार- सेबी ने यह भी कहा है कि आचार संहिता का पालन फंड मैनेजर्स और डीलर्स द्वारा किया जा रहा है या नहीं, इसकी जिम्मेदारी कंपनी के सीईओ की होगी। फंड मैनेजर और डीलर्स ट्रस्टी को तिमाही आधार पर सेल्फ सर्टिफिकेशन देंगे कि उन्होंने आचार संहिता का पालन किया है। फंड मैनेजर के पास निवेश के निर्णय के लिए उचित और पर्याप्त आधार होने चाहिए। वही अपने द्वारा मैनेज किए जाने वाले फंड में निवेश के लिए जिम्मेदार होंगे। इसके अलावा, फंड मैनेजर सिक्योरिटीज में खरीद और बिक्री के बारे में डिटेल के साथ लिखित रिकॉर्ड रखेंगे।
लेन-देन पर प्रतिबंध- सेबी ने यह भी कहा है कि फंड मैनेजर्स को या डीलर्स को किसी भी ऐसी काउंटर पार्टी के साथ फंड की ओर से कोई भी लेन-देन करने की अनुमति नहीं होगी। इस काउंटर पार्टी में स्पांसर/एएमसी/फंड मैनेजर/ डीलर/ सीईओ के सहयोगी शामिल हैं। वे यूनिटहोल्डर्स के पैसों के प्रबंधन के मामलों में किसी भी लालच के ऑफर को स्वीकार नहीं कर सकते हैं। फंड मैनेजर्स और डीलर्स को हमेशा स्पष्ट, पारदर्शी और सही तरीके से बात करनी होगी।
इंटर स्कीम पर सख्ती- एक फंड हाउस की ओर से लिक्विडिटी बढ़ाने की कोशिश करने और खत्म होने के बाद ही इंटर-स्कीम ट्रांसफर किया जा सकता है। इनमें स्कीम में उपलब्ध नकद व कैश इक्विवेलेंट असेट्स का इस्तेमाल और बाजारों में स्कीम असेट्स की बिक्री शामिल होगी। यह सर्कुलर 1 जनवरी से लागू होंगे।