365 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था के लिए करना पड़ सकता है लंबा इंतजार
मुंबई– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 5 ट्रिलियन डॉलर (365 लाख करोड़ रुपए) की अर्थव्यवस्था को हासिल करने के लिए कुछ और सालों तक इंतजार करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश की विकास दर अगले कुछ सालों तक एक सीमित दायरे में रह सकती है। हालांकि इस पर काफी कुछ असर कोरोना ने भी डाला है। साथ ही तमाम तरह के अन्य कारणों से ऐसा होगा।
रेटिंग एजेंसी केयर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि यदि देश का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) अगले 6 सालों तक सालाना 11.6 पर्सेंट की दर से औसतन बढ़ता है तो 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में 6 से 7 साल लग सकते हैं। यानी देश की GDP 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की हो सकती है। हालांकि 11.6 पर्सेंट की ग्रोथ रेट भी काफी ज्यादा आशावादी है। माना यह जा रहा है कि अभी अगले कुछ सालों तक तो यह ग्रोथ रेट 7-8 पर्सेंट के दायरे में ही रहेगी। ऐसे में और लंबे समय का इंतजार करना होगा।
दरअसल कोरोना ने आर्थिक गतिविधियों पर बुरा असर डाला है और आनेवाले समय में इसका क्या असर होगा, यह भी देखना होगा। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना का रुझान क्या होगा। यह कब खत्म होगा और फाइनल इसका क्या असर होगा। ऐसे में GDP की ग्रोथ रेट को लेकर अभी भी काफी इंतजार करना होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी दबाव में है। देश में राजनीतिक स्थिरता, प्रोग्रेसिव लीडरशिप जैसे तमाम फैक्टर्स हैं जो GDP पर असर डालेंगे। हालांकि दूसरी ओर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले सालों में अर्थव्यवस्था 8 पर्सेंट की दर से बढ़ सकती है। केयर रेटिंग का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में GDP में 8 पर्सेंट की दर से गिरावट आ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक यह अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था इस बात पर निर्भर करेगी कि कैसे देश इंफ्रा के निवेश को मैनेज कर रहा है। रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए देश में नया निवेश जरूरी है। अगर ऐसा होता है तो 365 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था के लिए अगले 7 सालों में सोचा जा सकता है। यानी यह 2027 तक संभव है।
रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि इस निवेश का कुछ हिस्सा केंद्र सरकार को और कुछ हिस्सा राज्य सरकारों को वहन करना होगा। दोनों के प्रयास से ही यह संभव होगा। साथ ही इसमें फाइनेंशियल सेक्टर जैसे बैंक, डेट, शेयर बाजार और विदेशी निवेश की भी जरूरत होगी। एजेंसी ने कहा है कि कोरोना को नियंत्रित करने में अनिश्चितता बनी हुई है। इसलिए इसकी चुनौतियां आगे और ज्यादा होंगी। हालांकि इंफ्रा से हालात कुछ हद तक सुधर सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, हाल के सालों में देश के बैंकिंग सेक्टर बुरे फंसे कर्जों (एनपीए) से जूझ रहा है। ऐसे में इस सेक्टर द्वारा इंफ्रा पर निवेश की संभावना काफी कम है। यह सेक्टर अभी भी कर्जों के प्रोविजनिंग में ही दबा हुआ है। संभावित नुकसान को देखते हुए जो प्रोविजनिंग की जा रही है उससे बैंकों का पूंजी आधार कम हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक इंफ्रा पर बहुत ज्यादा खर्च नहीं करेंगे। केयर रेटिंग का कहना है कि बाजार इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।