एफडी के निवेशकों के लिए आरबीआई के रेट कट न होने से फायदा
मुंबई- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अगस्त की पॉलिसी मीटिंग में दरों को जस का तस रखा है। हालांकि इसके पहले दो बार उसने लगातार कटौती की थी। आरबीआई का यह फैसला फिक्स्ड डिपॉजिट वाले निवेशकों के लिए अच्छा कदम है। क्योंकि पिछले एक साल में एफडी और सेविंग दोनों पर ब्याज दरें निचले स्तर पर हैं।
वैसे जो लोग फिक्स्ड और रेगुलर इनकम के लिए एफडी पर निर्भर हैं वे मासिक इनकम अकाउंट, पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट जैसी छोटी बचत योजनाओं (स्माल सेविंग स्कीम) में निवेश कर सकते हैं। 2020 की जून-सितंबर तिमाही के लिए सरकार ने छोटी बचत योजनाओं की दरों में कोई कटौती नहीं की है।
वैसे रेट कट न होने से सबसे ज्यादा निराशा उन लोगों को हुई है जिन्होंने कर्ज लिया है। हालांकि कर्ज की ब्याज दरें इस समय बहुत ही कम हैं और लगातार हाल के समय में कम हुई हैं। बैंकों के आंकड़ों से पता चलता है कि कुछ बैंकों की एफडी तो अब छोटे बैंकों के बचत खातों से भी कम ब्याज दर दे रही हैं। रिज़र्व बैंक द्वारा दर में कटौती पर रोक लगाने का मतलब यह हो सकता है कि बैंक भी लोन पर ब्याज दरों में कटौती को रोक देंगे।
वैसे रेपो रेट में कमी न होने से बैंकों को फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) दरों में कटौती करना मुश्किल होगा। मई महीने में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने दो बार अपनी एफडी दरों में कमी की है। 27 मई को बैंक ने एक साल की फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज 5.10 प्रतिशत और वरिष्ठ नागरिकों के लिए 5.60 प्रतिशत कर दी थी।
पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट पर 5.5 फीसदी ब्याज मिल रहा है। यह एसबीआई की ब्याज दर से 40 बीपीएस से ज्यादा है। हालांकि वरिष्ठ नागरिकों के पास एफडी में भी अतिरिक्त ब्याज मिलती है और साथ ही प्रधानमंत्री वय वंदना योजना और वरिष्ठ नागरिक बचत योजना वर्तमान में प्रति वर्ष 7 प्रतिशत से अधिक ब्याज मिल रही है।
वैसे आप निवेश करना चाहते हैं तो आरबीआई ने फ्लोटिंग रेट बॉन्ड भी लॉन्च किया है। इस पर वर्तमान में 7.15 प्रतिशत की दर ब्याज मिलेगी। यह आरबीआई के पहले के बांड की जगह पर लाया गया है। नए लॉन्च किए गए बांड पर ब्याज दर हर छह महीने में रीसेट की जाएगी और इसकी पहली तारीख 1 जनवरी, 2021 होगी। रेपो रेट में कोई कटौती नहीं होने से जो कर्जदार एक्सटर्नल बेंचमार्क से जुड़े हैं उनकी ईएमआई पर कोई असर नहीं होगा। इसी तरह मार्जिनल कॉस्ट बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) पर कोई असर नहीं आएगा। बैंक अभी भी चाहे तो अपने एमसीएलआर में कटौती कर सकता है।
आम तौर पर बैंक या तो एक साल या छह महीने की रीसेट अवधि के साथ होम लोन प्रदान करते हैं। इसलिए, भले ही आपका बैंक अपने एमसीएलआर को कम कर दे, आपके होम लोन की रीसेट तिथि आने पर ही ईएमआई कम होगी। रीसेट डेट पर आपके फ्यूचर ईएमआई की गणना उस तारीख (यानी रीसेट डेट) पर प्रचलित ब्याज दर के आधार पर की जाएगी।
जिन उधारकर्ताओं के लोन एमसीएलआर से जुड़े होते हैं, वे एक्सटर्नल बेंचमार्क से जुड़े लोन पर स्विच कर सकते हैं। वे प्रशासनिक लागत (administrative cost) का पेमेंट करके स्विच कर सकते हैं। हालांकि यह तभी करना चाहिए जब आपको लगे कि दोनों के बीच अंतर ज्यादा है। एक होम लोन लेने वाला जिसका लोन अभी भी बेस रेट या बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (बीपीएलआर) से जुड़ा हुआ है, वह एक्सटर्नल बेंचमार्क पर स्विच कर सकता है।