घायल थानाध्यक्ष ने बताई आधा मिनट में 20 राउंड की हुई हम पर फायरिंग
मुंबई-“रात का घुप्प अँधेरा था तभी हमें एक दो मंजिला घर की छत पर दो सिर दिखाई दिए हमें लगा कि छत पर कुछ लोग हैं। मूवमेंट देखते ही हमने उस घर को घेरना चाहा। कुछ लोग आगे की ओर रहे और कुछ पीछे की ओर बढ़े। मैं अपने दो साथियों के साथ आगे की ओर था। हम कुछ कर पाते तभी बगल वाले घर से अचानक फायरिंग शुरू हो गई। बस आधे मिनट में ही हम पर बीसियों राउंड फायर कर दिए गए होंगे।
ये शब्द बिठूर के थानाध्यक्ष कौशलेंद्र प्रताप सिंह के हैं जिन पर विकास दुबे गैंग ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं। सिंह के साथ-साथ उनके दो साथी भी इस घटना में गंभीर रूप से जख्मी हुए लेकिन केपी सिंह ने अपने दो साथियों अजय सेंगर और अजय कश्यप की जान बचाई। कानपुर के बिकरू गांव में विकास दुबे गैंग के साथ मुठभेड़ को लेकर केपी सिंह अभी भी सोच में हैं कि जो कुछ हुआ, वो कैसे हुआ? उनके लिए अभी भी ये बात एक पहेली बनी हुई है कि आख़िर विकास दुबे गैंग ने इस तरह का कदम क्या सोचकर उठाया।
रात में 11.30 बजे आया था फोन
के पी सिंह बताते हैं कि गुरुवार रात लगभग साढ़े ग्यारह बजे उनके पास चौबेपुर थाने के एसओ विनय तिवारी का फ़ोन आया था। वो बताते हैं, “मेरे पास लगभग 11-11:30 बजे एक फ़ोन आया कि “आ जाइए, एक दबिश के लिए चलना है। शिवराजपुर थाने से फोर्स आ रही है और बिल्हौर सीओ साहब भी आ रहे हैं। पड़ोसी थाने का मामला था और हम लोग सामान्यत: इस तरह का सहयोग करते रहते हैं। तो मैं तैयार हुआ और अपनी फोर्स को तैयार करके निकल पड़ा।
“इसके बाद हमारी गाड़ियां रास्ते में ही मिलीं और हम बिकरू गांव पहुंचे। जब हम गाँव में दाखिल हुए तो वहां घुप्प अंधेरा था। हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। इस मुठभेड़ से जुड़ी जानकारी में अब तक ये सामने आया है कि एक जेसीबी मशीन को विकास दुबे के घर के बाहर की सड़क को ब्लॉक करने की मंशा से खड़ा किया जाए। लेकिन अब तक ये जानकारी सामने नहीं आई कि ये मशीन किसके नाम पर पंजीकृत है और इसे सड़क के बीचोंबीच किसने खड़ा किया।
पोजीशन लेने से पहले ही फायरिंग हो गई
जेसीबी के बारे में केपी सिंह बताते हैं, “जब हमें जेसीबी दिखी तो हमें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है क्योंकि कोई जेसीबी को इस तरह खड़ा नहीं करेगा। इसके बाद जब हमें एक घर की छत पर दो लोग दिखाई दिए तो उन्हें घेरने के मकसद से हम आगे बढ़े। कुछ लोग घर के आगे और कुछ पीछे की ओर से गए।
“मैं अपने दो साथियों के साथ घर के आगे की ओर से गया था। हम कोई पोजिशन लेते इससे पहले ही बगल वाली छत से फायरिंग शुरू हो हुई। फायरिंग इतनी ताबड़तोड़ थी कि आधे मिनट के अंदर हम पर बीसियों राउंड फायर किए गए होंगे। इसके बाद हम सब लोग अलग-थलग पड़ गए।
हम लोग तितर बितर हो गए, यहीं कमजोर हो गए
“हम तीन लोग एक तरफ रह गए और बाकी लोग अलग-अलग जगहों पर चले गए। मेरे साथ अजय कश्यप और अजय सेंगर थे। मैंने अपनी पिस्तौल निकाली और उस ओर फायर किया जहां से फायरिंग हो रही थी। लेकिन मुझे लगा कि मेरी पिस्तौल की रेंज उतनी नहीं थी कि गोली वहां तक पहुंच सके। हमें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था और ऐसी स्थिति में हम दीवार के सहारे खड़े हुए थे। तभी मेरे दोनों साथियों ने बताया कि उन्हें गोलियां लगी हैं।
विकास दुबे के गैंग के साथ हुई इस मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों की मौत हुई है। और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। केपी सिंह ने गोलियों से घायल अपने दो साथियों को किसी तरह अस्पताल पहुंचाया। वो बताते हैं, “मेरे साथियों ने मुझे बताया कि सर आपके भी खून निकल रहा है। लेकिन मुझे बिल्कुल इस बात का अहसास नहीं हुआ था। मुझे लगा कि मेरी वर्दी पर जो खून है, वो मेरे साथियों का ही है। बाद में मुझे अहसास हुआ कि मेरे हाथ में गोली लगी थी। अजय सेंगर को पेट में गोली लगी थी। चूंकि मेरा मेडिकल का बैकग्राउंड है तो मुझे ये पता था कि पेट में गोली लगना कितना गंभीर हो सकता है।
हम तीनों को गोली लगी फिर भी कवर फायर करते रहे
“इसके बाद मैंने कवर फ़ायर देते हुए अपने दो साथियों को उस जगह से बाहर निकाला। हम किसी तरह वहां पास में मौजूद एक ट्रैक्टर ट्रॉली के पीछे जाकर छिपे। हमारे शरीर से खू़न बह रहा था और दूसरी तरफ ताबड़तोड़ गोलियां चल रही थीं। हम किसी तरह जवाबी फ़ायरिंग करते हुए बचने की कोशिश कर रहे थे।
वो बताते हैं कि “हम ऐसी हालत में थे तभी आवाज़ आई – बम मारो, बम.”
विकास दुबे गैंग की ओर से पुलिसकर्मियों पर धारदार हथियारों के साथ-साथ बमों के इस्तेमाल की बात भी सामने आई है।
केपी सिंह बताते हैं, “हम किसी तरह ट्रैक्टर के पीछे छिपे थे कि तभी किसी ने हमें देख लिया और कहा कि ‘बम मारो, बम’। हमें लगा कि इन्होंने हमें देख लिया है और अब बम मार सकते हैं तो हम एक कच्चे मकान में घुसे। हमने सोचा कि हम दूसरी ओर से होकर बाहर निकल जाएंगे। लेकिन वहां कोई दूसरा रास्ता नहीं था। इस पर हम तत्काल बाहर निकले और हमें एक रास्ता मिल गया जिससे होते हुए हम गाड़ी तक पहुंचे।
केपी सिंह कहते हैं, “रास्ते में जब हम अस्पताल की ओर जा रहे थे। तब मुझे पता चला कि मेरे पैर में भी एक गोली लगी है लेकिन उस वक़्त मेरे साथियों की हालत बिगड़ने लगी थी। मैं लगातार उनके साथ बात करता रहा और उनको हौसला बंधाता रहा कि उन्हें कुछ नहीं होगा।
“हम तीनों लोगों की जान बच गई है लेकिन दुख सिर्फ इस बात का है कि हम अपने चौकी इंचार्ज और दूसरे साथियों को नहीं बचा पाए क्योंकि वो लोग दूसरी दिशा में चले गए और इस पूरी घटना के दौरान हमसे बिछड़ गए।